Friday 31 October 2014

प्रजातंत्र की गरिमा कायम रखी है श्री शिवराज ने




प्रजातंत्र की गरिमा कायम रखी है श्री शिवराज ने

प्रजातंत्र में लोकप्रियता की कसौटी का मापदण्ड क्या? इसका सबसे सरल और सीधा जवाब है जनता की स्वीकार्यता और चुनाव में जीत। श्री शिवराजसिंह चौहान की इससे बड़ी जन स्वीकार्यता क्या होगी कि प्रदेश के युवा उन्हें अपने मामा, महिलायें अपने भाई और प्रदेशवासी अपना सबसे प्रिय हितैषी मानते हैं। ऐसा कोई एक-दो दिन में नहीं हुआ। श्री शिवराज ने मन वचन और आचरण से अपने आप को ऐसा ढ़ाला है कि पूरा प्रदेश उनका अपना हो गया। और जहाँ तक चुनाव में जीत का सवाल है वे लगातार इस कसौटी में खरे उतरे हैं।

मध्यप्रदेश के जैत गाँव के किसान परिवार में 5 मार्च 1959 को जन्मे श्री शिवराजसिंह चौहान बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के धनी हैं। नेतृत्व क्षमता उनमें बचपन से है। छोटी कक्षा में मानीटर बनने से लेकर मॉडल हायर सेकेण्ड्री स्कूल के छात्र संघ अध्यक्ष तक उन्होंने छात्र जीवन में नेतृत्व का पाठ सीखा। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के विभिन्न पदों में रहे। भारतीय जनता पाटी के युवा मोर्चा के अनेक पदों से लेकर अध्यक्ष तक का पदभार उन्होंने संभाला। वे भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे। वे सन् 1990 में पहली बार बुदनी विधानसभा क्षेत्र में विधायक का चुनाव जीते। उनकी नेतृत्व क्षमता, मिलनसारिता, सरल व्यक्तित्व और सर्वसुलभता का परिणाम था कि वे पाँच बार चुनाव में विजयी होकर विदिशा-रायसेन लोकसभा क्षेत्र से संसद सदस्य रहे। नेतृत्व क्षमता को ही पहचान कर भारतीय जनता पार्टी ने शिवराजसिंह चौहान में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की योग्यता देखी। शिवराजसिंह चौहान 29 नवम्बर 2005 को पहली बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने। पार्टी द्वारा मुख्यमंत्री बनाये जाने के निर्णय में वे एक सफलतम व्यक्ति साबित हुए।

वर्ष 2008 में प्रदेश विधानसभा चुनाव मुख्यमंत्री रहते हुए चौहान ने नेतृत्व में लड़ा गया। इसमें भारतीय जनता पार्टी ने पुन: ऐतिहासिक जीत दर्ज की। परिणामस्वरूप श्री चौहान ने 12 दिसम्बर 2008 को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की दोबारा शपथ ली। इस विजय ने साबित कर दिया कि शिवराजसिंह चौहान सही अर्थों में जननेता हैं। उन पर आम जन का अटूट विश्वास है। शिवराज ने भी इस विश्वास को कभी खंडित नहीं होने दिया। उन्होंने प्रदेश में प्राय: सभी वर्गों की पंचायतें बुलाकर उनके हित में व्यवहारिक निर्णय लिये।

उन्होंने मध्यप्रदेश को बीमारू के कलंक से उबार कर देश का सबसे तेजी से विकसित होता राज्य बनाया। उनके कार्यकाल में मध्यप्रदेश की विकास दर लगातार डबल डिजिट में चल रही है। कृषि विकास दर 19 प्रतिशत से अधिक होने का चमत्कार मध्यप्रदेश में श्री चौहान के नेतृत्व में देखा है। प्रदेश में 24 घंटे बिजली और क्षिप्रा का नर्मदा से मिलन भी किसी चमत्कार से कम नहीं है। सिंचाई, सड़कें, उद्योग आदि हर क्षेत्र में मध्यप्रदेश के बढ़ते कदम देश के लिये उदाहरण बन गये। श्री शिवराज का संकल्प है कि मध्यप्रदेश को देश का ही नहीं दुनिया का सर्वश्रेष्ठ राज्य बनाना है। जनता भी उनके साथ है तभी पिछले विधानसभा निर्वाचन में श्री चौहान के जादुई नेतृत्व में उन्हे 165 सीटों का प्रचंड बहुमत मिला। उन्होंने 14 दिसम्बर 2013 को जम्बूरी मैदान में आयोजित ऐतिहासिक समारोह में तीसरी बार लगातार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की शपथ ली।

आकर्षण है श्री शिवराज में। वे प्रदेश के ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो बिल्कुल सरल, सहज, मिलनसार हैं। उनमें पद का घमंड किसी ने कभी ने देखा होगा। हर कोई उनसे मिल लेता है। बल्कि यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि वे खुद ही जाकर हर किसी से मिल लेते हैं। इसमें सबसे बड़ी बात यह की वे पंक्ति में खड़े सबसे आखिरी व्यक्ति तक पहुँचने की कोशिश ही नहीं करते स-प्रयास उनके समीप होते हैं। लगता है हर किसी की पीड़ा उनकी अपनी है। इस पीड़ा को हर लेना चाहते हैं वे।

कठिन परिश्रम में उनका कोई सानी नहीं है। आश्चर्य होता है देखकर कि वे प्रतिदिन 18 घंटे से अधिक लगातार कार्य करते हैं। उनके द्वारा किया गया जनदर्शन, वनवासी सम्मान यात्रा और अभी हाल में हुये विधानसभा चुनावों से पहले उनकी जन आशीर्वाद यात्रा सुबह से लेकर अक्सर दूसरा दिन लग जाने तक लगातार चलीं। वे कभी थकते नहीं दिखे। विभागों की समीक्षा का दौर और प्रशासनिक कार्य भी वे ऐसे ही लगातार करते हैं। उन्होंने एक आम कार्यकर्ता से लगातार तीन बार मुख्यमंत्री बनने का सफल इसी परिश्रम से तय किया है। वे सतत अध्ययनशील हैं। सामान्यत: किसी भी विषय पर वे बिना अध्ययन के नहीं बोलते। जब भी बोलते हैं पूरे अधिकार के साथ विषय पारंगत होकर। सबने सुना है धर्मों और दर्शन के विविध आयामों पर उन्हें बोलते हुए। गीता के श्लोक उन्हें कंठस्थ हैं। सामयिक विषयों पर लगातार तथ्य परक बात करते हैं। उनके मुख से कबीर और संत रविदास, महात्मा ज्योतिबा फुले की वाणी झरने के शुद्ध जल की तरह प्रवाहित होते देखी है। प्रकाश पर्व पर गुरू ग्रंथ साहब, पर्यूषण पर्व के क्षमापर्व के अवसर पर जैन धर्म का उल्लेख, इस्लाम और ईसाई धर्मों के त्यौहारों पर शिवराज का धार्मिक संवाद सुन बहुतों को अवाक होते देखा है। अपने शासकीय निवास पर इन सब धर्मों को बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाने वाले देश के पहले मुख्यमंत्री हैं।

श्री चौहान ने अपने जीवन में पं. दीनदयाल उपाध्याय के दर्शन को अपनाया है। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने जितनी भी योजनाएँ बनाईं सभी में पं. दीनदयाल उपाध्याय की प्रेरणा दिखायी देती है। वे दीन को भगवान मानकर उनकी सेवा का संकल्प लिये कार्य करते हैं। पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति और समाज के सबसे कमजोर वर्ग का सबसे पहले कल्याण उनका लक्ष्य होता है।

दृढ़-इच्छाशक्ति के साथ संकल्पबद्ध होकर कार्य करना उनकी विशेषता है। इसी विशेषता से उन्होंने मध्यप्रदेश में बेटी को बोझ से वरदान बना दिया। आज मध्यप्रदेश में बेटियाँ अपने आप को गौरवान्वित महसूस कर रही हैं। शिवराज का '' बेटी बचाओ अभियान'' प्रदेश में जन आंदोलन का रूप ले चुका है। बेटियों की घटती संख्या राष्ट्रीय चिंता का विषय है। मध्यप्रदेश में उनके द्वारा प्रारंभ अभियान से वे देश में बेटी बचाओ आंदोलन के प्रणेता बन गये हैं।

श्री शिवराज अपने सरल स्वभाव और साफगोई से सबको अपना बना लेते हैं। राजनीति में उनकी सौजन्यता से विरोधी भी कायल हो जाते हैं। राजनीति उनके लिये सेवा का माध्यम है। उन्होंने अपने पुरूषार्थ, कर्मठता और सहजता से राजनीति को नयी शैली दी है। प्रजातंत्र की गरिमा ऐसे ही नेतृत्व से कायम है।

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