Friday 31 October 2014

समय-परिस्थिति के अनुरूप निर्णय की असाधारण क्षमता है श्री शिवराज सिंह चौहान में






समय-परिस्थिति के अनुरूप निर्णय की

 असाधारण क्षमता है श्री शिवराज सिंह चौहान में

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की तुलना एक ऐसे व्यक्ति के रूप में की जाती है जो समय और परिस्थिति भाँपने और उसके अनुरूप निर्णय लेने की असाधारण क्षमता रखते हैं। वे ऐसे नेता हैं जो न केवल अपने दल को बल्कि निराशा से घिरती जनता को अपनी उपस्थिति का मजबूत अहसास दिलाकर पुन: आत्म-विश्वास से भर देते हैं।

पिछले एक साल के दौरान मध्यप्रदेश को प्रकृति के तांडव का तीन बार सामना करना पड़ा। पहला मानूसन के दौरान प्रदेश के अनेक क्षेत्रों में भारी वर्षा से गाँव के गाँव डूब में आये। तब श्री चौहान ने खुद मोर्चा सम्हाला। दिन-रात एक कर दिये, राहत और बचाव कार्यों को अंजाम देने में। ऐसा प्रतीत होता था राज्य नियंत्रण कक्ष मानो मुख्यमंत्री आवास में खुल गया है। कमान स्वयं प्रदेश के मुख्यमंत्री सम्हाले हुए हैं। पूरी रात कमिश्नर-कलेक्टरों से जीवंत सम्पर्क। क्षेत्र के जन-प्रतिनिधियों-कार्यकर्ताओं से सीधी चर्चा। हिम्मत और हौसले के साथ लोगों की मदद के निर्देश। दिन निकलते ही आला अधिकारियों के साथ बैठक। स्थिति की समीक्षा। हर आवश्यक कदम उठाने के निर्देश। इतना ही नहीं खराब मौसम की परवाह किये बगैर प्रभावित क्षेत्र के दौर पर निकलना। हर जिले की ही नहीं हर गाँव की जानकारी लेना और प्रभावितों के भोजन, वस्त्र, ठिकाने की व्यवस्था सुनिश्चित हो जाने तक लगातार जुटे रहना। मैं खुद साक्षी हूँ। देखा वे लगातार अठारह-बीस घंटे इस कार्य में लगे हैं। मुख्यमंत्री को इतनी मेहनत करते देख अधिकारी-कर्मचारी भी दोगुने उत्साह से जुटे। जन-प्रतिनिधि लगे रहे और जनता में भी इतना आत्म-विश्वास जागा कि संकट का सामना कर लिया गया। स्थिति सामान्य हो गयी। बरसात भी थम गयी। प्रकृति शायद एक परीक्षा और लेना चाहती थी।

मानसून की मोहलत पाकर किसानों ने खरीफ की फसलें बोईं। सोयाबीन लह-लहाने लगा कि तभी फिर भारी वर्षा से तबाही के मंजर से कुछ ही दिनों में दूसरा संकट पैदा हो गया। देखते-देखते खेत डूबने लगे। किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। मध्यप्रदेश ने केन्द्र सरकार को वस्तु-स्थिति से अवगत करवाया। सहायता की माँग की। केन्द्रीय दल निरीक्षण पर आया। उसने भी तबाही हुई है, स्वीकार किया। केन्द्रीय मदद की प्रतीक्षा किये बगैर मुख्यमंत्री ने प्रदेश में किसानों को मदद देने का सिलसिला शुरू किया। संबंधित केन्द्रीय मंत्रियों से लेकर प्रधानमंत्री जी तक को केन्द्रीय मदद उपलब्ध करवाने के लिये पत्र लिखे। स्वयं भी दिल्ली जाकर उनसे मिले। किसानों की हालत बयान की। मुख्यमंत्री की इस सक्रियता से किसान आत्म-विश्वास के साथ पुन: उठ खड़े हुए।

नुकसान तो बहुत हुआ पर भरपूर वर्षा का अगली फसल के लिये किसानों को लाभ भी मिला। सिंचाई के तालाब लबालब भर गये। समय पर खाद-बीज मिलने, वह भी जीरो प्रतिशत ब्याज दर के ऋण पर, किसान फिर जुट गये। मुख्यमंत्री की हौसला अफजाई से वे उत्साहित थे। फसलें बोई गयीं। खेत हरे-भरे दिखने लगे। बीच-बीच में मावठा गिरने और भरपूर बिजली मिलने का फायदा उठा कर जहाँ जरूरत पड़ी सिंचाई होने से फसलें मजबूती के साथ जवान हो गयीं। मध्यप्रदेश में, लोग ऐसा कहते हैं, इतनी शानदार फसल पहले कभी नहीं देखी गयी थीं। कुछ समय और बीता, फसलें पकने लगीं। फसलें किसानों के घर आने को ही थी पर प्रकृति को यह मंजूर नहीं था। मौसम ने अचानक करवट बदली। मौसम बसंती था पर ठंडी आ गयी। इतना ही नहीं प्रकृति इतनी निष्ठुर हो गयी कि उसने पूरे प्रदेश में तीसरा तांडव करना प्रारंभ कर दिया। ओले गिरने लगे। जो फसलें थोड़ी देर पहले खुशी से झूम रही थीं, प्रकृति की इस निष्ठुरता को बर्दाश्त नहीं कर पायीं। जमींदोज हो गयी। हतप्रभ किसान मानो टूट गया। घर आने से ठीक पहले ही उसकी फसल प्रकृति ने छुड़ा ली थी। रह गये किसानों की आँखों में आँसू।

श्री शिवराज सिंह चौहान को तबाही की कभी इस जिले से तो कभी उस जिले से खबरें मिल रही थीं। वे रात भर सोये नहीं। सुबह होते ही उन्होंने मंत्रियों और प्रदेश के वरिष्ठ अधिकारियों की आपात बैठक बुलाई। अचानक उत्पन्न इस असाधारण परिस्थिति से कैसे निपटा जाये, सलाह-मशविरा किया। स्थितियाँ बहुत विकट थीं। बैठक में सबके चेहरे पर चिंता थी। चिंतित शिवराज भी थे। उन्होंने दृढ़ता का परिचय देते हुए स्थिति को सम्हाला, कहा कि हाथ पर हाथ धर कर बैठने से काम नहीं चलेगा। यह नेतृत्व और प्रशासन की परीक्षा की घड़ी है। उन्होंने दृढ़ता के साथ कहा कि इस संकट से किसानों को पार ले जायेंगे। जन-प्रतिनिधि, अधिकारी अविलम्ब किसानों के बीच पहुँचे। ढाँढस बँधायें, उनका मनोबल टूटने न दें। यह समय उदासीनता बरतने अथवा निराश होने का नहीं है। श्री चौहान ने निर्देश दिये कि क्षति आकलन को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाय। हर गाँव और हर खेत का पारदर्शिता के साथ सर्वेक्षण हो। उन्होंने किसी भी कोताही की स्थिति को नाकाबिले बर्दाश्त मानते हुए कलेक्टरों की जिम्मेदारी निर्धारित की। राज्य स्तर पर भी कृषि उत्पादन आयुक्त की अध्यक्षता में संबंधित विभाग के उच्च अधिकारियों की संयुक्त समिति बना कर सतत निगरानी की व्यवस्था की। राज्य के बजट में इस आपदा से निपटने के लिये 2000 करोड़ रुपये की तात्कालिक व्यवस्था के निर्देश दिये। बजट में इतनी बड़ी राशि के प्रावधान से चिंतित वित्त विभाग को श्री चौहान ने आश्वस्त किया कि भले ही विकास कार्यों में कटौती तथा अन्य खर्चों में कमी करना पड़े, किसानों को मुआवजा दिया जायेगा। उन्होंने प्रदेश के सभी कमिश्नर-कलेक्टरों को भी वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये तत्काल सक्रियता बरतने के निर्देश दिये।

श्री चौहान इस चर्चा के फौरन बाद मंत्रालय से सीधे ओला प्रभावित क्षेत्रों की तरफ निकल पड़े। किसानों से हौसला बनाये रखने की अपील की। जगह-जगह जाकर ढाँढस बँधाते हुए विश्वास दिलाया कि चिंता न करें, परेशान न हों। मैं हूँ ना। उन्होंने जिन किसानों की 50 प्रतिशत से अधिक फसलें नष्ट हुई हैं उन्हें एक रुपया किलो गेहूँ-चावल उपलब्ध करवाने, बेटी का ब्याह होने पर 25 हजार रुपये देने जैसी महत्वपूर्ण घोषणाएँ कीं। जिन किसानों की 25 से 50 प्रतिशत फसलें तबाह हुई हैं उन्हें भी मुआवजा देने का वायदा किया। क्षति में किसानों की सब्जी-भाजी, फल आदि सभी तरह की फसलों, परिजनों की मृत्यु, पशुधन की हानि तथा घर-द्वार की क्षति पर भी व्यवहारिक मुआवजा उपलब्ध करवाने के निर्णय की जानकारी दी। हताश होते किसानों पर मुख्यमंत्री की इस सक्रियता का सीधा असर दिखा। विश्वास जगा। वे पूरी तरह आश्वस्त हैं कि श्री शिवराज सिंह चौहान उनके साथ हैं।

श्री चौहान की दूरदर्शिता और दृढ़ संकल्प के साथ कार्य करने का एक और उदाहरण याद आता है। पिछले साल उत्तराखंड में भयानक प्राकृतिक आपदा से भीषण तबाही हुई। पूरे देश के लाखों तीर्थ-यात्री फँस गये। शायद श्री चौहान को पहले ही दिन इस विपत्ति की भयावहता का अहसास हो गया था। वे अविलम्ब उत्तराखंड गये। आश्रमों में जाकर प्रदेशवासियों के लिये शिविरों की व्यवस्था की। प्रकृति का तांडव बढ़ता गया। आने-जाने के सारे रास्ते बंद होते गये। प्रकृति का जब यह रौद्र रूप थमा, उत्तराखंड भारी तबाही से गुजर चुका था। हर तरफ भयानक मंजर। पूरा देश चिंतित। केवल वायु मार्ग से वहाँ पहुँचने की, वह भी कुछ दिनों बाद स्थिति बनी। श्री चौहान ने प्रदेश के पूरे हेलीकाप्टर, वायुयान उत्तराखंड भेज दिये। किराये से भी हेलीकाप्टर लेकर वहाँ भेजे। उन्होंने निर्देश दिये कि मानवीयता के साथ बगैर भेदभाव के जो भी यात्री वहाँ फँसा दिखाई दे, उसे सुरक्षित स्थानों पर लाया जाय। प्रदेश से एक वरिष्ठ मंत्री को दल-बल के साथ राहत-बचाव कार्यों के लिये वहाँ भेजा। यह श्री चौहान की दूरदर्शिता ही थी और मानवीय संवेदना के साथ कार्य करने की प्रकृति। हजारों तीर्थ-यात्रियों को विशेष विमान से सुरक्षित प्रदेश लाया गया। जिनके परिजन लौट कर नहीं आ पाये ऐसे परिवारों की आर्थिक मदद भी की गयी। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री खुद विमान लेकर यात्रियों को लेने पहुँचे। जिन आश्रम में प्रदेशवासियों के लिये व्यवस्था की गयी थी, वहाँ गये। आभार माना। श्री शिवराजसिंह की इस दूरदर्शिता और कार्य-प्रणाली का कायल है पूरा प्रदेश।